डूबते सूरज की किरणों मे नहाई ये वादियाँ, और
मंद- मंद बहती नदियों की शीतलता को लपेटे ये हवा;
बाहर तांकता हुआ कक्ष्या की खिड़की से, मैं...
सोच रहा हूँ...
काश! क्या वक़्त लायेगा ये लम्हे कभी, दुबारा जिन्दगी मे???
खिल गए मुस्कान लबों पे, आँखों मे छा गए हंसी नज़ारे...बीते कल के;
की तभी, वक़्त की सुइयों पर चलती इस दुनिया ने, "झकझोर दिया", और
छीन गयी मुझसे, लबो की हंसी.. मेरे ख्वाब..हंसी यादे ..मंद मंद बहती हवा..
पर है मुझको विश्वास खुद पर, इस डूबते सूरज की तरह;
"कल फिर सूरज निकलेगा..फिर बिखेरेंगी आशा की किरने..
और फिर खिलेगी अधरों पर मुस्कान ..."
4 comments:
yup bRO finaaly STARTED ....WAITING for MORE
muskaan ke sath ek nayi subah fir se agyi..good start...:))
:)
:):):) अधरों की मुस्कान .....जरूर लौटेगी....... भरोंसा है मुझे.....!! प्यारी सी रचना..... :)(:
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